देवा शरीफ


किसी ने सोचा भी नहीं था कि देवा जैसी छोटी सी जगह पर पैदा हुआ एक बच्चा ईश्वर का एक ऐसा दूत बनकर आया है जिसकी ख्याति सम्पूर्ण विश्व में फैलने वाली है। सबसे महतवपूर्ण बात ये है कि ये ख्याति सभी जाति धर्मों के बन्धनों से परे इंसानियत की नुमाइंदगी करती है। ईश्वर की अलौकिक आभा से परिपूर्ण इस प्यारे से बच्चे का नाम था ' हाजी वारिस अली शाह। सैययद वारिस अली शाह का जन्म 1810 0 के आस-पास का माना जाता हैं। ये हज़रत इमाम हुसैन के 26 वें वंशज थे।


    हिन्दू और मुसिम उन्हें वेदान्त और सूफी का सच्चा प्रदर्शक मानते थे। ये पहले सूफी दर्वेश थे जिन्होंने सात समुन्दर पार कर्इ देशों का भ्रमण किया जिसमें मुख्य रूप् से यूरोप शामिल था। इनके बारे में कर्इ चमत्कारी बातें प्रचलित है। कहा जाता है कि उनके पैरो में कभी भी धूल नहीं लगती थी जबकि वो हमेशा नंगे पैर ही भ्रमण करते थे और जब किसी के गलीचे पे पाँव रखते तो भी धूल के कोर्इ निशान नहीं पड़ते थे। उन्होंने हमेंशा साप्रदायिक सौहार्दय एवं वैशिवक भाइचारे को बढ़ावा दिया। 6 अप्रैल सन 1905 0 में हाजी वारिस अली शाह जी की मृत्यु हो गयी। जिस स्थान पर इनें सुपुर्देखाक किया गया वहीं पर इनका भव्य मकबरा बनाया गया जिसे देवा शरीफ के नाम से जाना जाता है। इस मकबरे के निर्माण में हिन्दु और मुसिलम दोनाें समुदाय के लोगों ने बढ़ चढ़ कर सहयोग किया। यह मकबरी साम्प्रदायिक एकता और भाइचारे की मिसाल पेश करता है। यहाँ सेलानी पाकिस्तान तथा कई मध्य पूर्व देशों से भी आते हैं और इस पवित्र दरगाह पर अपनी मन्नतों की पूरा करने के लिये आते हैं।


हाजी अली शाह को याद में प्रति वर्ष बहुत ही भव्य मेले का आयोजन होता है जो कि तीन भागों में मनाया जाता है-
कार्तिक-(अक्टूबर, नवम्बर)
चैत- (पहला रबी-उल-अव्वल, अप्रैल)
सफर-(पहला सफर, मार्च)
यह मेला देश भर से तथा विदेशी यात्रियों को भी बहुत आकर्षित करता है।
इस मेले के मुख्य आकर्षण-दरगाह पर चादर चढ़ाना होता है।
बनारसी सिल्क की चादर को हाजी साहब तथा उनके पिता हाजी कुर्बान अली शाह की मजार पर चढ़ाया जाता है। इन चादरों को चांदी के तश्तरियों में रख के लाया जाता है। कव्वाली तथा समपर्ण गानों का भी आयोजन होता है।




इस मेले में पशु बाजार भी लगती है तथा विभिन्न स्टाल यहाँ की संस्कृति और कृषि से जुड़े उपकरणों का भी प्रदर्शन करते हैं। कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है जैसे कि मुशायरा, कवि सम्मेलन, संगीत संध्या, वाद-विवाद प्रतियोगिता यह सब विभिन्न सजे हुये पंडाल में आयोजित किया जाता है।


    देवा शरीफ लखनऊ से लगभग 42 कि0मी0 दूर बाराबंकी जिले में सिथत है। यहाँ तक का सफर ट्रेन, बस या निजी वाहनों के द्वारा भी तय किया जा सकता है। बाहर से आये पर्यटकों के रूकने के लिये लखनऊ में सभी तरह के होटल हैं। बजट होटल से लेकर पांच सितारा होटल तक उपलब्ध है।
सबसे नजदीकी हवाई अड्डा लखनऊ सिथत चौ0 चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। देवा शरीफ अपनी सांस्कृतिक तथा वैशिवक एकता की विरासत की बदौलत हमेंशा ही पर्यटकों के लिये आकर्षण का केन्द्र बना रहेगा।


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Comments

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